स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप संशोधन विधेयक 2019 मंगलवार को राज्यसभा से पास हो गया।
मोदी सरकार पिछले कई विधेयकों को या तो बदल चुकी है या संशोधित कर चुकी है। पिछले
कानूनों को रद्द करने या नए कलेवर में पेश करते वक्त अक्सर पिछली सरकारों की
खामियों को जिम्मेदार ठहराया जाता है। खासकर गांधी परिवार के शासन को। इस बार
भी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एसपीजी के बहाने गांधी परिवार पर निशाना साधा।
उन्होंने कहा कि मैं साफ करना चाहता हूं कि गांधी परिवार को ध्यान में रखते हुए यह बिल
नहीं लाया गया। बिल से गांधी परिवार का कोई संबंध नहीं है। सुरक्षा सभी को मिलनी
चाहिए। 130 करोड़ लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की है। एसपीजी सुरक्षा की
जिद मुझे समझ नहीं आती। अमित शाह ने कहा कि हम समानता में मानते हैं। इस देश में सिर्फ
गांधी परिवार की सुरक्षा नहीं है। पूर्व पीएम चंद्रशेखर और वीपी सिंह की सुरक्षा
हटा ली गई थी। कांग्रेस के ही नरसिम्हा राव की सुरक्षा हटा ली गई थी। मनमोहन सिंह की
सुरक्षा जेड प्लस की गई। तब कांग्रेस ने कोई हाय तौबा नहीं मचायी। हम परिवार का
विरोध नहीं करते। परिवारवाद का विरोध करते हैं। जब तक हमारे सीने में दम है हम
विरोध करते रहेंगे।
हमेशा की तरह अमित शाह के गांधी परिवार को लेकर दिए गए इस बयान में नफरत की बू
आई। व्यक्तिगत तौर पर बेशक वे किसी से नफरत करें, प्यार करें, चिढ़ें या
सहानुभूति रखें। लेकिन गृहमंत्री के तौर पर उनसे व्यापक और उदार दृष्टिकोण
अपनाने की उम्मीद देश करता है। किसी भी लोककल्याणकारी सरकार का दायित्व है कि वह
देश के हर नागरिक की सुरक्षा सुनिश्चित करे। लेकिन आज मोदी सरकार यह बात दावे
से नहीं कह सकती है कि उसके निजाम में सब सुरक्षित हैं। लड़कियां तो इस देश में सर्वाधिक
असुरक्षित हैं ही, दलित, अल्पसंख्यक वर्गों का हाल भी बहुत अच्छा नहीं है। सबकी सुरक्षा की बात
करने वाली मोदी सरकार ने आखिर भीड़ की हिंसा की जिम्मेदारी अपने ऊपर तो कभी ली
नहीं, उल्टे पिछले कार्यकाल में उनके मंत्री भीड़ की हिंसा के आरोपियों का माला
पहना कर स्वागत करते नजर आए। जहां तक बात एसपीजी सुरक्षा की है, तो यह देश में उन
लोगों को प्राप्त थी, जिनकी जान पर हमेशा खतरा मंडराता रहा है। अमित शाह ने जिन पूर्व
प्रधानमंत्रियों की सुरक्षा हटने का तर्क दिया, उनमें से किसी के परिजन को आतंकवाद का
शिकार नहीं होना पड़ा। लेकिन गांधी परिवार को यह सुरक्षा इसलिए मिली हुई थी,
क्योंकि पहले इंदिरा गांधी और फिर राजीव गांधी की नृशंस हत्या हुई। 1984 में इंदिरा
गांधी की हत्या के बाद उनके परिवार पर हमले के खतरे बढ़े तो उन्हें विशेष सुरक्षा
देने के लिए 1988 में एसपीजी का गठन हुआ। 1989 में राजीव गांधी की सरकार गिरी और तब
सत्ता में आए वीपी सिंह ने उनसे एसपीजी सुरक्षा वापस ले ली। जबकि उनकी जान को खतरा
बरकरार था। इस फैसले का घातक परिणाम 1991 में देखने मिला, जब चुनावी सभा में
लिट्टे आतंकवादियों ने राजीव गांधी की हत्या कर दी। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर
राजीव गांधी एसपीजी सुरक्षा घेरे में होते, तो शायद उनकी जान न जाती। इसलिए गांधी
परिवार को एसपीजी सुरक्षा जिद नहीं बल्कि जरूरत के नजरिए से देखनी चाहिए। यह संयोग है
या कुछ और कि एसपीजी सुरक्षा हटने के बाद प्रियंका गांधी के घर बिना जांच के एक
काली गाड़ी पहुंच गई, जिसमें सात लोग सवार थे। वे सभी कांग्रेस कार्यकर्ता बताए जा रहे
हैं। अमित शाह ने इस संबंध में कहा कि राहुल गांधी भी एक काली गाड़ी में आने वाले हैं,
ऐसी खबर सुरक्षाकर्मियों को थी। चूंकि वक्त वही था और गाड़ी काली ही थी, इसलिए बिना जांच
के गाड़ी अंदर चली गई, यह एक इत्तेफाक था। सवाल ये है कि क्या सुरक्षा इसी तरह
इत्तेफाक आधारित होगी? एसपीजी को अगर गांधी परिवार के स्टेटस सिंबल या जिद से जोड़
कर देखा जा रहा है, तो फिर देश में कई ऐसे लोगों को सुरक्षा मिली हुई है, जो केवल
अपना महत्व दर्शाने के लिए सीआरपीएफ या पुलिस के जवानों के घेरे में चलते हैं। इस वक्त
सीआरपीएफ के कम से कम 4 हजार जवान वीआईपी सुरक्षा ड्यूटी में लगे हैं, इनमें
रिलायंस समूह के मालिक मुकेश अंबानी और उनकी पत्नी नीता अंबानी भी शामिल हैं।
भारत में वीआईपी संस्कृति का खामियाजा हमेशा आम जनता को भुगतना पड़ता है। बहुत से
नेताओं ने जनता की इस तकलीफ को समझा और लालबत्ती हटाने जैसी पहल भी की। लेकिन
फिर भी सत्ता और शक्ति संपन्न लोगों की मानसिकता में कोई खास फर्क नहीं आया है। वैसे
हिंदुस्तानी नेता और शासक इस मामले में स्वीडन के राजा कार्ल गुस्ताफ सोलहवें और पत्नी
सिल्विया से सीख ले सकते हैं, जिन्होंने अपने विमान में खराबी के कारण एयर इंडिया से
यात्रा की और अपना सामान भी खुद उठाया। पांच दिनों के भारत दौरे पर आए इस शाही
जोड़े का यह साधारण अंदाज लोगों के बीच चर्चा का विषय है। बहरहाल, अब जबकि गांधी
परिवार की एसपीजी सुरक्षा हटा ली गई है, मोदी सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा
कि उनकी सुरक्षा के साथ कोई समझौता न हो।