महाराष्ट्र तथा हरियाणा राज्यों में हुए विधानसभा के आम चुनावों के परिणाम आ चुके
हैं। देश के एक समाचार पत्र ने इन परिणामों के संबंध में अत्यंत उपयुक्त शीर्षक लगाते हुए
लिखा -श्मतदाताओं ने सभी को कहा -हैप्पी दीपावलीश्। वास्तव में इन परिणामों ने इन चुनावों
में सक्रिय लगभग सभी राजनैतिक दलों को खुश रहने का कोई न कोई अवसर जरूर प्रदान
किया है। हरियाणा में जैसे भी हो मगर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी करने में
सफल रही जबकि महाराष्ट्र उसकी अपनी चुनाव पूर्व सहयोगी शिवसेना के साथ मुख्यमंत्री पद को
लेकर घमासान जारी है ।
कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी दोनों ही दलों ने अपने आप में पहले से काफी अधिक
सुधार किया दोनों ही दलों की राजनैतिक स्थित महाराष्ट्र तथा हरियाणा के आम चुनावों से
लेकर विभिन्न राज्यों में हुए लोकसभा व विधान सभा के उप चुनावों तक में काफी बेहतर
हुई। उधर हरियाणा के चुनावी मैदान में उतरी सबसे नई नवेली पार्टी जननायक जनता
पार्टी ने अपने चुनाव निशान श्चाबीश् की हैसियत को अपने पहले ही चुनाव में ही उस समय
पहचनवा दिया जबकि पहली बार में ही सत्ता की चाबी भी उसी के पास रही और पहले ही चुनाव
में उप मुख्यमंत्री का पद हासिल कर पाने में जजपा कामयाब रही। उपरोक्त पूरे
राजनैतिक घटनाक्रम में किसी प्रकार की नैतिकता आदि की बात करने की जरुरत इसलिए नहीं
कि यह राजनैतिक जोड़ तोड़ और सत्ता समीकरण बिठाने के विषय हैं लिहाजा यहाँ
नैतिकता,सिद्धांत अथवा वैचारिक प्रतिबद्धता के दृष्टिकोण से किसी भी पहलू पर नजर डालना कतई
मुनासिब नहीं। 24 अक्टूबर की शाम तक जिस समय लगभग पूरे चुनाव परिणाम आ चुके थे
और यह स्पष्ट हो चुका था कि प्रधानमंत्री मोदी व गृह मंत्री अमित शाह द्वारा बार बार दिया
जाने वाला कांग्रेस मुक्त भारत बनाए जाने का नारा जहाँ एक बार फिर असफल हुआ वहीं
हरियाणा में भी पिछले कई महीनों से भाजपा द्वारा चलाया जा रहा अब की बार 75
पारश् का अभियान भी मुंह के बल गिर पड़ा। कांग्रेस पार्टी ने तमाम तरह की
नकारात्मकता के बावजूद जैसा प्रदर्शन महाराष्ट्र,हरियाणा तथा कई राज्यों के उप
चुनावों में किया है उसकी किसी भी राजनैतिक विश्लेषक को यहाँ तक कि शायद कांग्रेसजनों
को भी उम्मीद नहीं थी। चुनाव परिणामों से यह भी स्पष्ट हो गया कि चुनाव में श्मोदी के नाम का
जादूश् जैसी कोई भी चीज अब मतदाताओं के बीच नहीं रह गई है।भारतीय जनता पार्टी ने
हरियाणा में 2005 में हुए चुनाव में मात्र दो सीटों पर जीत दर्ज की थी जो 2009 का चुनाव
आते आते केवल चार सीटें जीतने की स्थिति में आ सकी। परन्तु 2014 में पहली बार भाजपा
ने जब राज्य की 90 में से 46 सीटों पर जीत दर्ज की उस समय से ही बहुमत के नशे में चूर
भाजपाइ नेताओं में पार्टी को अजेय समझने जैसा अहंकार पैदा होना शुरू हो गया था।
अन्यथा लोकतान्त्रिक व्यवस्था में,जहाँ जीत हार,और यश अपयश की सारी चाभियाँ ही
श्लोकश् अथवा जनता के पास हों वहां स्वयं भू रूप से यह घोषणा कर देना कि अब की बार-75
पार न केवल लोकतंत्र का अपमान है बल्कि अहंकार की पराकाष्ठा भी है। और हरियाणा
चुनाव नतीजों ने यह दिखा भी दिया कि नारों व अहंकार के प्रभाव में जनता नहीं आने वाली।
हरियाणा में खट्टर मंत्रिमंडल के सात मंत्रियों को भी जनता ने इस चुनाव में धूल चटा दी। इन
में कई जो स्वयं को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताते थे उनकी जमानत भी जब्त हो गई। ठीक इसके
विपरीत संगठनात्मक तौर पर बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस पार्टी जो कि हरियाणा
में विशेष रूप से ठीक चुनाव पूर्व ही एक निर्णायक संकटकालीन दौर से गुजरी। यहाँ तक
कि आला कमान ने ठीक चुनाव पूर्व ही 3 वर्षों से हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पर
आसीन रहे अशोक तंवर को हटाकर कुमारी शैलजा को राज्य कांग्रेस का अध्यक्ष
बनाने जैसा जोखिम भरा फैसला लिया। उधर भाजपा के नेता पूरे देश में घूम घूम कर
जनता से देश को कांग्रेस मुक्त करने की जोरदार अपील करते आ रहे हैं। पंडित जवाहर
लाल नेहरू और कांग्रेस पार्टी को जम कर एक साथ कोसा जा रहा है। कश्मीर से धरा 370
हटाने के केंद्र सरकार के फैसले के बाद इसी बहाने कांग्रेस व नेहरू पर महाराष्ट्र
से हरियाणा तक एक बार फिर निशाने साधे गए। परन्तु नतीजा यही रहा की भाजपा को
लडख़ड़ाना पड़ा और कांग्रेस सहित लगभग सभी विपक्षी दल पहले से अधिक मजबूत हुए।