अगस्त महीने का भारत की आजादी के आंदोलन से गहरा संबंध रहा है। 9 अगस्त की अगस्त क्रांति
(भारत छोड़ो आंदोलन) और 15 अगस्त का ऐतिहासिक दिन जब हमे साम्राज्यवाद की दासता से वर्षों के
संघर्ष और लाखों की कुर्बानी के बाद मुक्ति मिली व अपनी तरह देश को सजाने-संवारने तथा
आगे ले जाने का मौका मिला-कई मायनों में यह बेमिसाल है। लेकिन इसी अगस्त 2019 को
काश्मीर के विशेष प्रावधान को संसद में संख्याबल के जुगाड़ द्वारा आनन-फानन में खत्म कर
दिया गया तथा जिस राज्य से यह विशेष प्रावधान छीना गया उस राज्य के लोगों को कानोंकान
खबर तक नहीं होने दिया गया, संगीन के साये में लोग अपने घरों में कैद रहे, मुख्य धारा की
पार्टियों के नेता गिरफ्तार कर लिये गये, इंटरनेट सेवायें बंद कर दी गईं व सूचना
से पूरे राज्य को महरूम कर दिया गया। इस तरह लम्बी बहस केबाद संविधान सभा द्वारा
स्वीकृत प्रावधान (जिसमें भाजपा संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की सहमति भी थी) की धज्जी उड़ा दी
गई। जिस राज्य विधानसभा से धारा 370 समाप्त करने संबंधी प्रस्ताव पास होना था वह योजनाबद्ध
ढंग से पूर्व से ही भंग थी तथा राज्यपाल को ही राज्य की जनता का प्रतिनिधि मानकर उनकी कथित
राय को ही इस विशेष प्रावधान को खत्म करने के लिये स्वीकार कर लिया गया। काश्मीर
समस्या कोई साधारण समस्या नहीं है। इसके समाधान के लिये आजादी के बाद से ही प्रयास
जारी है। इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं और साम्राज्यवाद व इसके खिलाफ लड़ी गई स्वतंत्रता
आंदोलन की लड़ाई से इसका खास नाता है। लोग शायद भूले नहीं होगें कि आजादी की लड़ाई
लड़ते हुये, यातनायें सहते हुये और शहादतें देते हुये लोगों ने कभी यह नहीं सोचा था कि
आजादी हमें खंडित मिलेगी और धर्म के आधार पर एक देश दो हिस्सों में स्वतंत्र होगें। हमें यह
नहीं भूलना चाहिये कि यूरोपीय पुनर्जागरण व औद्योगिक क्रान्ति के दम पर ग्रेेट ब्रिटेन
ने जिस तरह भारत सहित एशिया-अफ्रीका के अनेक देशों को रौंदकर अपनी सत्ता स्थापित की तथा
यहां के राजे-रजवाड़ों के आपसी फूट का फायदा उठाकर अपनी ताकत में इजाफा किया
वह अभूतपूर्व है। धर्म एक दुखती रग थी भारत में, जिसे पहचानने में अंग्रेजों ने देर नहीं की और
अपनी सत्ता बनाये रखने में इसका भरपूर उपयोग किया। ध्यान रहे कि अंग्रेजों के इस
कुटिल चाल के खिलाफ 1857 में प्रथम राष्ट्रीय विप्लव अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जेफर
के नेतृत्व में लड़ा गया और उनके झण्डे तले देश के अधिकांश राजे-रजवाड़े नवाब,
सैनिक व किसान तथा हिन्दू-मुस्लिम सभी शामिल होकर अंग्रेजों की सत्ता को कड़ी टक्कर दी,
हालांकि यह विद्रोह असफल हो गया। राजाओं-नवाबों को पदावनत कर अंग्रेजीे राज्य में
शामिल कर लिया गया तथा नेतृत्व कर रहे बहादुर शाह ज$फर को बर्मा में कैद कर उन्हें
फांसी दे दी गई। 1857 के विद्रोह से सबक लेकर अंग्रेजों ने भारतीय एकता को तार-तार करने
की ठान ली और इस दिशा में उन्होंने इतिहास लेखन की नई परमपरा अपने प्रशासकों को
आगे कर प्रारंभ किया। जेम्स मिल ऐसा पहला प्रशासक था जिसने अपने बहुचर्चित गन्थ ब्रिटिश
भारत का इतिहास्य लिख साम्प्रदायिकता का आधार खड़ा किया तथा बहुत पहले ही द्विराष्ट्रवादी
सिद्धांत की नींव डाली। वही ऐसा पहला इतिहासकार था जिसने भारतीय इतिहास को तीन कालखण्डों
में विभाजित किया-हिन्दू सभ्यता, मुस्लिम सभ्यता व ब्रिटिश सभ्यता यही काल विभाजन भारतीय
राष्ट्रवादी इतिहासकारों का मार्गदर्शक बना तथा आगे चलकर मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा व
आर.एस.एस. के निर्माण की पृष्ठभूमि भी। इन साम्प्रदायिक संगठनों को खड़ा करने में अंग्रेजों
ने सक्रिय मदद की और अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी। यह हिन्दू-मुस्लिम विवाद फूट डालो राज करो
नीति का ही हिस्सा रहा है, जिसका उभार 1990 के बाद से अपने शबाब पर है। दिसंबर 1992
में बाबरी विध्वंस पहली कड़ी के रूप में सामने आया। इस विध्वंस ने भारत की आत्मा व
संविधान की मर्यादा को झकझोर कर रख दिया तथा पाकिस्तान के तर्ज पर भारत में भी हिन्दू
राष्ट्र की परिकल्पना की जाने लगी, हालांकि भाजपा को पूर्ण बहुमत न मिल पाने के
कारण यह योजना 2014 तक आगे न बढ़ सकी। बहुमत मिलते ही मोदी के नेतृत्व में इस दिशा में
उछाल आना शुरू हुआ लेकिन गरीब समर्थक लफ्फाजी व सबका साथ सबके विकास के जुमले के
साथ 2019 तक आगे बढ़-पीछे हट की रणनीति को अपनाते हुये इसे जारी रखा गया 2019 के
आम चुनाव मे अनेक विवादों, आशंकाओं, कुशंकाओं के बावजूद मोदी की भाजपा पहले से
अधिक बहुमत के साथ सत्तारूढ़ हुई, और सत्ता में बैठते ही इस सरकार ने संसद का सहारा
लेकरताबड़तोड़ फैसले लेना शुरू कर दिये। चुन-चुनकर ऐसे बिल संसद में लाये गये
जिनका न तो देश से बेरोजगारी दूर करने का कोई संबंध था न किसी आर्थिक सुधार से
कोई वास्ता। तीन तलाक, जम्मू -काश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाने, सूचना के
अधिकार कानून को कमजोर करने तथा पांच ट्रिलियन की इकॉनामी जैसे करतब के बाद
अंततरू संसद का समय बढ़ाकर जम्मू-काश्मीर राज्य के विशेष प्रावधान धारा 370 व 35-ए की
समाप्ति की घोषणा कर दी गई। राज्य को दो हिस्सों में बांटकर इसे दो केन्द्र शासित राज्यों
में परिविर्तत कर दिया गया, यह थी इस बहुमत की उपलब्धि व सीमावर्ती राज्य के भविष्य का
निर्णय।मजेदार बात यह है कि इस निर्णय के संबंध में न केवल राज्य के लोगों को पूरी तरह
अंधेरे में रखा गया वरन पूरे देश को भी इसकी भनक नही लगने दी गई। सीमावर्ती राज्य
जम्मू-काश्मीर को विभाजित करने का भाजपा सरकार का फैसला आकस्मिक नहीं था। यह
आर.एस.एस. की पुरानी मांग रही है, जिसे लोकसभा के बहुमत और राज्यसभा में बहुमत के
प्रयत्न द्वारा पूरा कर, शेष भारत में हिन्दू-मुस्लिम राग की दुंदुभि बजाई जा रही
है।इसे दुहराने की आवश्यकता नहीं है कि किन परिस्थितियों में देश विभाजन के समय मुस्लिम
बहुल व सीमावर्ती राज्य जम्मू-काश्मीर ने धर्म आधारित मुस्लिम देश पाकिस्तान मेें शामिल
होने की जगह धर्मनिरपेक्ष भारत से जुडऩे और इसका अटूट हिस्सा बनने का फैसला
किया।