देशहित में साहसिक निर्णय

पिछले कुछ समय से भारत द्वारा क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) के
नाम पर आसियान देशों के साथ एक नये मुक्त व्यापार समझौते की कवायद चल रही थी, जिस
पर चार नवंबर, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बैंकॉक में इस घोषणा के साथ
कि भारत आरसीईपी में शामिल नहीं होगा, विराम लग गया है. यह समझौता केवल नाम से ही
व्यापक नहीं था, बल्कि वास्तव में यह अत्यंत विस्तृत समझौता था, जिसमें निवेश, कृषि, डेयरी,
मैन्युफैक्चिरिंग, ई-कॉमर्स, डाटा समेत तमाम विषय शामिल थे. किसान, डेयरी में संलग्न लोग,
स्टील, केमिकल्स, टेलीकॉम, ऑटोमोबाइल, साइकिल, टैक्सटाइल समेत विभिन्न क्षेत्र इस


समझौते का विरोध कर रहे थे. बीते दिनों में इस समझौते को भारत के अनुकूल बनाने के
संदर्भ में कुछ विषय आरसीईपी में चले, लेकिन भारत के जरूरी मुद्दों और चिंताओं का
निराकरण नहीं हो पाया. इस समझौते का मूल विषय था वस्तुओं के आयातों पर शुल्क
शून्य करना. मुक्त व्यापार समझौतों का मतलब है आयात शुल्कों को समाप्त कर वस्तुओं की
आवाजाही को मुक्त बनाना. गौरतलब है कि इस प्रस्तावित समझौते में चीन से आनेवाली 80
प्रतिशत वस्तुओं पर और अन्य देशों से आनेवाली 90 से 95 प्रतिशत वस्तुओं पर आयात शुल्क
को शून्य करने का प्रस्ताव था. आसियान देशों के साथ हमारा मुक्त व्यापार समझौता
पहले से ही है, जो 2011 में हुआ था. इस समझौते के बाद आसियान देशों से हमारा व्यापार
घाटा लगभग तीन गुणा बढ़ चुका है. इस समझौते में न तो कोई निकलने का प्रावधान था और
न ही पुनर्विचार का. इसके कारण देश के किसानों और उद्योगों को भारी नुकसान सहना
पड़ा. लगभग एक माह पहले भारत के वाणिज्य मंत्री ने इस समझौते पर पुनर्विचार के लिए
आसियान देशों को राजी कर लिया था, जो भारत के लिए काफी फायदेमंद रहेगा. उधर
जापान और दक्षिण कोरिया के साथ भी इसी प्रकार का मुक्त व्यापार समझौता यूपीए के
शासनकाल में ही हो गया था.इसके कारण भी जापान और दक्षिण कोरिया के साथ
हमारा व्यापार घाटा ढाई-तीन गुना बढ़ गया. कुल मिलाकर आरसीईपी देशों के
साथ हमारा व्यापार घाटा 105 अरब डॉलर के लगभग है. यदि यह समझौता हो जाता, तो
शून्य आयात शुल्कों के कारण इन मुल्कों से आयातों की बाढ़ आ जाती. आरसीईपी में
भारत के शामिल न होने से भारत के उद्योग, डेयरी और कृषि क्षेत्र खुश हैं. भारत में 10
करोड़ किसान एवं गैर-किसानों की जीविका डेयरी पर चलती है, जबकि न्यूजीलैंड का सारा
डेयरी उत्पाद मात्र 11.5 हजार डेयरियों से आता है और वे दुनिया के कुल डेयरी
निर्यातों का 30 प्रतिशत हिस्सा रखते हैं. जापान अपने देश में चावल, गेहूं, कपास, चीनी और
डेयरी के उत्पादकों के संरक्षण के लिए 33.8 अरब डॉलर (14,136 डॉलर प्रति किसान) की
सहायता देता है, जबकि भारत में यह सहायता नगण्य है. इसलिए यदि हम यह सोचें कि हमारे किसानों
को अन्य देशों में व्यापार पहुंच मिल जाती, तो यह गलत होता. न्यूजीलैंड के दूध पावडर की कीमत
180 रुपये प्रति किलो है, जबकि भारत में दूध पावडर की कीमत 290 रुपये प्रति किलो है.
आरसीईपी समझौते में शामिल होने के बाद न्यूजीलैंड से शून्य आयात शुल्क पर डेयरी
उत्पाद आने से भारत के डेयरी की रीढ़ ही टूट जाती.साल 2014 में नरेंद्र मोदी
सरकार आने के बाद यह समस्या आई कि यूपीए सरकार द्वारा जो निवेश समझौते किये
गये थे, उनके कारण निवेशकों ने भारत सरकार पर मुकदमे करने शुरू कर दिये
कि उन मुल्कों के साथ समझौतों के अनुरूप सुविधाएं नहीं दी गयीं और इसलिए उन्हें मुआवजा
मिलना चाहिए. ऐसे में इन समझौतों से निजात पाने के लिए उन्हें रद्द करने की प्रक्रिया शुरू
की गयी. आरसीईपी समझौते के बाद विदेशी कंपनियों द्वारा रॉयल्टी और टेक्निकल
फीस पर अंकुश भी समाप्त हो जाता. अब इस समस्या से भी निजात मिल जायेगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी द्वारा आरसीईपी से बाहर आने का यह निर्णय आसान नहीं था. इस फैसले से
प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया को एक संदेश भी दिया है कि दुनिया से रिश्ते बनाने में हमें अपने
देश और अपने लोगों के हितों को ही सर्वोपरि रखना चाहिए. प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया है कि
आज भारत एक नया भारत है, और वह अपने देश की आकांक्षाओं के साथ समझौता करने
के लिए तैयार नहीं है. उनका यह निर्णय देश के हित में है, इसलिए उनके इस निर्णय की देश
में सराहना हो रही है. जहां आसियान मुल्कों के साथ हुए पुराने समझौते पर अब
पुनर्विचार शुरू हो गया है, वहीं जापान और दक्षिण कोरिया के साथ हुए समझौतों पर
पुनर्विचार की मांग भी जोर पकडऩे लगी है. हमें समझना होगा कि इस समझौते से बाहर
आने से डेटा के मुक्त प्रवाह को अनुमति देने की जो कवायद चल रही थी, उस पर भी विराम लग


गया है. गौरतलब है कि इससे भारत के पास यह मौका है कि विदेशी भुगतान कंपनियों, ई-
कॉमर्स कंपनियों और सोशल मीडिया कंपनियों को अपना डेटा भारत में ही रखने के लिए
मजबूर किया जाये.
यह भारत के डिजिटल इंडिया के सपने को भी साकार करेगा. आरसीईपी समझौता
प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया, किसानों की आय दोगुनी करने, डिजिटल इंडिया, भारत को
मैन्युफैक्चिरिंग हब बनाने आदि अनेक सपनों को धूमिल कर देता. अब हम आगे बढ़ सकते है.