महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों के नतीजों की अगर एक वाक्य में व्याख्या की
जाए तो कहा जा सकता है कि इन चुनावों में नरेन्द्र मोदी-अमित शाह की हार हुई है, जबकि शरद
पवार, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और दुष्यंत चौटाला की जीत हुई है। व्यक्तियों से परे अगर
संकेतों की बात की जाए, तो कह सकते हैं कि विधानसभा चुनावों में राष्ट्रवाद का भावनात्मक
गुब्बारा फूट चुका है, जबकि स्थानीय मुद्दों को मतदाताओं ने तरजीह दी है। महाराष्ट्र में तो
भाजपा-शिवसेना की महायुति को स्पष्ट बहुमत मिल गया है, इसलिए वहां फिर से एनडीए की सरकार
बनना तय है। लेकिन हरियाणा में 75 पार वाला नारा भाजपा के काम नहीं आया,
सरकार बनाने के लिए जरूरी आंकड़े वह नहीं जुटा पाई और अब यह नजर आ रहा है
कि गोवा, मणिपुर, कर्नाटक जैसा खेल हरियाणा में भी खेला जाएगा।
राजद ने तो इस पर करारा तंज भी कसा है कि धनतेरस पर अमित शाह विधायकों की खरीद
करेंगे। लोकतंत्र का नाम लेने वाली, राष्ट्रवादी होने का दंभ भरने वाली किसी भी पार्टी
के लिए यह शर्मनाक है कि वह जनादेश को स्वीकार करने का सलीका न दिखाए और केवल
सत्ता हासिल करने के लिए सारे प्रपंच रचे। लेकिन आज की राजनीति में इसे सहज मान लिया
गया है, इसलिए अगर भाजपा, दुष्यंत चौटाला को अपने साथ मिला लेती है या निर्दलियों को
भाजपा को समर्थन देने के लिए राजी कर लेती है, तो एक बार फिर सत्तारोही प्रपंच की जीत हो
सकती है।
कांग्रेस भी हरियाणा में फिर से सरकार बनाने को उत्सुक है और भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने
भाजपा विरोधी सभी दलों को साथ आने का न्यौता दिया है, अपनी सरकार बनने पर सबको
सम्मान मिलने का आश्वासन भी दिया है। फिलहाल चाबी चिह्नड्ढ वाले चौटालाजी के हाथ में सत्ता
की चाबी है, ऐसा विश्लेषक मानते हैं। महज 10 महीने पहले खड़ी हुई जेजेपी यानी जननायक जनता
पार्टी का नाम भी अभी बाकी देश को ठीक से याद नहीं हुआ है, लेकिन हरियाणा के लोगों
ने इसे खूब पहचाना। उपचुनाव और आम चुनावों में फिसड्डी साबित हुई जेजेपी को विधानसभा
चुनाव में कोई खास खिलाड़ी नहीं माना जा रहा था। सबकी निगाहें भाजपा पर टिकी थीं कि
उसकी सीटें कितनी बढ़ती हैं। इनेलो इस बार कैसा प्रदर्शन करती है। कांग्रेस को तो पहले ही
चूका हुआ मान लिया गया था, क्योंकि वहां चुनाव से ऐन पहले प्रदेश इकाई में बदलाव किया
गया। लेकिन सारी धारणाओं के विपरीत जेजेपी किंगमेकर बनकर उभरी। दुष्यंत
चौटाला ने पहले संसद में कमाल किया, अब प्रदेश की राजनीति में, इसलिए उनसे भविष्य में कई
उम्मीदें बांधी जाएंगी। उनके परदादा देवीलाल के राजनैतिक कौशल के तराजू पर उन्हें
तौला जाएगा। लिहाजा उनके सामने अभी हरियाणा में सरकार बनवाने से लेकर उसे
स्थायी और मजबूत बनाने की महती जिम्मेदारी है। देखना ये है कि वे अपनी चाबी किसके हाथ में
सौंपते हैं। इधर महाराष्ट्र में महायुति की जीत के बावजूद महाजश्न का कारण भाजपा के
पास नहीं है। शिवसेना को चुनाव के पहले दादागिरी दिखाने वाली भाजपा अब शायद फिर
छोटे भाई की भूमिका में आने से गुरेज न करे। भाजपा की सीटें घटी हैं और
शिवसेना की 50-50 वाली दावेदारी बढ़ी है। फिर भी ये दोनों मिलकर सरकार बनाएंगे ही,
देखना केवल ये है कि क्या आदित्य ठाकरे उपमुख्यमंत्री बन कर पूरे पांच साल रहेंगे
या फिर ठाकरे परिवार को पहला मुख्यमंत्री मिलेगा। महाराष्ट्र चुनाव में कांग्रेस-
एनसीपी गठबंधन का प्रदर्शन उम्मीद से बेहतर रहा। और देखा जाए तो इस चुनाव में छत्रपति शरद
पवार ही बन कर उभरे हैं। चुनाव प्रचार में उम्र और स्वास्थ्य की सीमाओं को नजरंदाज
करते हुए उन्होंने कड़ी मेहनत की और राजनीति के युवा खिलाडिय़ों को अपने खेल से चमत्कृत
कर दिया। इन चुनावों के बाद भारत के राजनैतिक नक्शे में कोई खास बदलाव नहीं आने
वाला है।
भाजपा का भगवा रंग अब भी सबसे ज्यादा उभर कर दिख रहा है। लेकिन राम मंदिर, अनुच्छेद
370, सावरकर को भारत रत्न, हाउडी मोदी ऐसे तमाम हथकंडे भी भाजपा को आम चुनावों वाली
जीत का अहसास नहीं दिला सके हैं। और अब इस जीत के बावजूद भाजपा को यह विचार करना
चाहिए कि जब उसे भारत पर राज करना ही है तो जमीन से जुड़े मुद्दों से वह कब तक आंख
चुराएगी। आर्थिक मंदी, बेरोजगारी, शिक्षा, महिला सुरक्षा जैसे मसलों पर अपनी
नाकामी की समीक्षा वह क्यों नहीं करती है। विधानसभा चुनाव तो स्थानीय मुद्दों पर ही केन्द्रित
होते हैं, लेकिन भाजपा को तो उपचुनावों में भी अपेक्षित सफलता नहीं मिली है। जिन्हें दूसरे दलों
से तोड़कर वह लाई थी, वे भी सफल नहीं हुए हैं। विधानसभा चुनावों में राजनैतिक दलों के
रणनीतिक कौशल, मतदाता की राजनैतिक समझ की परीक्षा के साथ मीडिया की निष्पक्षता भी
परखी जाती है। जिसमें पिछले कई चुनावों की तरह इस बार भी उसका प्रदर्शन बेहद कमजोर
रहा है। एक्जिट पोल की भविष्यवाणी के साथ आकाओं को खुश करने की परिपाटी अब
उसे छोडऩी चाहिए और नीर-क्षीर विवेक के साथ काम करना चाहिए।