पंजाब एंड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक (पीएमसी) की स्थापना 35 साल पहले, 1984 में मुंबई
के सियान इलाके में हुई थी। इस समय इस बैंक की सात राज्यों में 137 शाखाएं हैं। महाराष्ट्र
के अलावा गोवा, गुजरात, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली और कर्नाटक में पीएमसी की
शाखाएं हैं। नाम 'पंजाब एंड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक' है, मगर पंजाब में एक भी
शाखा नहीं है। मार्च 2019 की बैलेंस शीट के अनुसार, पीएमसी का सालाना मुनाफा 99
करोड़ रूपये था। इतना भर मुनाफा कमाने वाले पीएमसी ने एक प्राइवेट बिल्डर कंपनी,
हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (एचडीआईएल) को तीनेक साल पहले कैसे कर्ज
के रूप कई सौ करोड़ दिये थे, और रिजर्व बैंक को भेजे ऑडिट में उसे किस तरह छिपाया
गया? हैरान कर देने वाला सवाल है। इस बैंक का मैनेजिंग डायरेक्टर जॉय थॉमस
जेल भेजा जा चुका है। थॉमस ने जेल यात्रा से पहले मीडिया वालों जानकारी दी थी कि
'एचडीआईएल' से बैंक के संबंध 1989-90 से थे। कर्ज की राशि पिछले छह साल में बढ़कर 2500
करोड़ हो गई थी। थॉमस ने यह भी बताया कि बिल्डर एचडीआईएल वालों ने बैंक ऑफ इंडिया
से कर्ज ले रखा था, जहां वे दिवालिया घोषित होने वाले थे, उन्हें बचाने के लिए पीएमसी ने 96.5
करोड़ का अतिरिक्त लोन दे दिया था। यह मामला नेशनल लॉ कंपनी ट्रिब्यूनल में भी गया था,
जहां बिल्डर ने बैंक ऑफ इंडिया को अगस्त 2019 तक 522.3 करोड़ चुकाने का अहद किया था।
प्राइवेट बिल्डर कंपनी, एचडीआईएल ने न तो बैंक ऑफ इंडिया को तय समय पर रकम
लौटाया, न ही पीएमसी के 2500 करोड़ चुकता किये। 19 सितंबर 2019 को जब इस मामले की
परतें खुलने लगीं, तो आरबीआई के कुछ बड़े अफसरों ने अपनी खाल बचाने के लिए 23 सितंबर
की शाम को पीएमसी को नोटिस जारी किये कि सभी खातेदारों के अकाउंट से अगले आदेश
तक सिर्फ एक हजार रूपये निकालने की अनुमति दी जाती है। इस आदेश की सूचना अगले दिन
खातेदारों तक पहुंची, वे बैंक के आगे हाहाकारी मुद्रा में थे। विरोध पर उतरी पब्लिक,
सोशल मीडिया और कुछेक चौनलों पर खबरों की वजह से दबाव बना और बैंक के
अधिकारियों ने दस हजार रूपये तक निकालने का आदेश दे दिया। पीएमसी प्रकरण में जैसे-
जैसे जांच एजेंसियां आगे बढ़ रही हैं, रोज नये-नये घोटाले उजागर हो रहे हैं।
गुजिश्तां गुरूवार को पता चला कि 10.5 करोड़ कैश पीएमसी के रिकार्ड से गायब हैं। कर्ज
के नाम पर लूट की रकम 4 हजार 355 करोड़ नहीं, बल्कि साढ़े छह हजार करोड़ की
बंदरबांट हुई है। ढाई हजार करोड़ की चपत लगाने वाली प्राइवेट बिल्डर कंपनी,
हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (एचडीआईएल) के अलावा कई और हैं, जो इस
लूट में शामिल रहे हैं। इस हमाम में कोई ऐसा राजनीतिक दल नहीं है, जो दावा करे कि हम
नंगे नहीं थे, और हमारे लोगों ने बैंक को लूटा नहीं है। बैंक से लोन के नाम पर बड़ी
रकम निकाल कर डकार जाना, शालीन तरीके से लूटना ही तो है।
चुनाव के समय पीएमसी घोटाले की इतनी थू-थू हो रही थी कि विवश होकर 'एचडीआईएल' के
प्रोमोटर राकेश और सारंग वाधवान को गिरफ्तार करना पड़ा। उनकी चल-अचल
संपत्तियों में रॉयल्स रॉयल कार, प्राइवेट हवाई जहाज और लग्जरी नौका तक है।
इनकी नीलामी कर क्या बैंक की रकम का पूरा भुगतान संभव है? यह सब जो कार्रवाई हो
रही है, उससे क्या सड़कों पर उतरे खातेदारों की समस्या का समाधान हो जा रहा है? अपने
ही पैसे निकालने के वास्ते लोगों को दर-दर भटकने और भिखारियों जैसी स्थिति में लाने
के वास्ते कौन जिम्मेदार है? सरकार, बैंकिंग प्रणाली यारिजर्व बैंक का वह अफसर जिसके
आदेश सेखातेदार बलि का बकरा बने। दो खातेदार संजय गुलाटी और फत्तोमल पंजाबी
हार्ट अटैक से मर गये, और एक महिला ने खुदकुशी कर ली। शुक्रवार को एक बुजुर्ग भी
सिधार गये। यह एक ढर्रा बन गया है, किसी भी गलती के लिए सत्तर साल से जारी नीतियों को
कोसो। मगर, इसका जवाब नहीं देंगे कि पिछले छह साल से देश की सबसे ईमानदार सरकार
क्या कर रही थी? पिछले छह साल से किनके कर-कमलों में रिजर्व बैंक का रिमोट कंट्रोल
है? बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949 से पूरे देश में लागू है। इसके अलावा कई सारे पूरक
अधिनियम बैंकिंग व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के वास्ते गाइडलाइन का काम करते हैं।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद रिजर्व बैंक को केंद्रीय बैंक का दर्जा दिया गया। उससे पहले भी
रिजर्व बैंक को सभी प्रकार की मौद्रिक नीतियां तय करने की स्वतंत्रता प्राप्त थी। मगर 8 नवंबर
2016 को पीएम मोदी ने जब नोटबंदी की अचानक से घोषणा की, उससे साबित हुआ कि रिजर्व बैंक
के अधिकारों का अपचालन भी हो सकता है। क्योंकि जो 'आई प्रॉमिस टू पे' यानी 'मैं
धारक को रूपये अदा करने का वचन देता हूं' जैसे मुद्रित शब्द पर हस्ताक्षर कर करेंसी
नोट जारी करता है, ऐसे रिजर्व बैंक के गवर्नर को ही नोट रद्द करने का अधिकार है।
सिर्फ एक रूपये का नोट या सिक्का जारी करना वित्त मंत्रालय के अधीन है। तो कायदे से
प्रधानमंत्री, एक रूपये के नोट को ही रद्द करने के लिए अधिकृत थे। शासक के वास्ते सारे
नियम कायदे शिथिल कर दिये जाते हैं, यह संदेश भी 8 नवंबर 2016 को देना था। यह क्या अजीब
नहीं लगता, जब पीएमसी के खाताधारक रूपये की निकासी का सवाल लेकर देश की वित्त मंत्री
के सामने रिरियाते हैं, तो उनका जवाब होता है कि हम रिजर्व बैंक से बात करेंगे?
खाताधारक अब भी पूरे घैर्य से उस परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यह मजाक ही तो है,
आप जब मर्जी रिजर्व बैंक के कामकाज में हस्तघ्क्षेप करते हैं, जब मन नहीं हुआ, चुप्पी लगा
जाते हैं। महाराष्ट्र के मंच पर शिवाजी से लेकर सावरकर को सम्मान देते हैं, मगर पीएमसी
के खाताधारकों की मौत की परवाह नहीं होती। लाखों खाताधारक जिस त्रासद स्थिति से गुजर
रहे हैं, वह चुनावी मंच का विषय नहीं होता। आप 8 नवंबर 2016 से लेकर अबतक के कालखंड की
समीक्षा करेंगे, तो एक बात तो साफ समझ में आती है कि इस देश की बैंकिंग व्यवस्था ने लोगों का
भरोसा खो दिया है। यहां के नागरिक उन्हीं बैंकों में खाता खोलने को प्राथमिकता देते हैं, जो
रिजर्व बैंक से संबद्ध होता है। तो क्या पीएमसी के लाखों खाताधारकों ने गुनाह किया था? आज
की तारीख में सरकारी, प्राइवेट किसी भी बैंक के खाताधारक से बात करके देखिये, उसे
लगता है, बुरे वक्त में वह एक लाख रूपये भी बैंक से आसानी से नहीं निकाल सकेगा। इसे कहते
हैं, भरोसे का भूस्खलन। यही वजह है कि लोगों ने अपने को सुरक्षित करने के वास्ते थोड़ा-बहुत
पैसा सोने-चांदी में लगाना शुरू किया है, ताकि बुरे वक्त में इस धातु को तुरंत भुना सके।
तीनेक साल पहले यह संदेश दे दिया गया कि रिजर्व बैंक के वायदे 'आई प्रॉमिस टू पेÓ पर
भी आप भरोसा न करें। क्या शायद यही सोचकर अंग्रेजों ने मूर्ख दिवस के दिन रिजर्व बैंक
की स्थापना की थी? 1 अप्रैल 1935 को मुंबई में रिजर्व बैंक की बुनियाद रखी गई थी। रिजर्व
बैंक से बहुत पहले गुजरात के बडोदरा में 'अन्योन्य सहकारी मंडली' नामक कोऑपरेटिव
बैंक की स्थापना 1889 में हुई थी। इसकी शुरूआत मात्र 76 रूपये से की गई थी। ग्रामीण भारत
के लिए सहकारी बैंक, आंदोलन जैसा था। इसकेतीन स्तरीय ढांचे में पहला राज्य मुख्यालयों
में खुलने वाला 'स्टेट कोऑपरेटिव बैंकÓ है, मार्च 2013 में इनकी संख्या 31 बताई गई।
दूसरा चरण,जिला स्तर पर खोले गये 'सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक' का था, जिनकी संख्या
370 थी। और सबसे निचले पायदान पर 'प्राइमरी एग्रीकल्चर कोऑपरेटिव सोसाइटी'
बनी, देशभर के पंचायतों व गांवों में 92 हजार 432 ऐसे बैंक खुले। ये सारे रिजर्व बैंक
से गाइडेड हैं। इनका मकसद साहुकारी से मुक्ति दिलाना था। मगर, इसमें दबंग टाइप के लोग
और माफिया घुस आये। पीएमसी में जिस तरह का घोटाला हुआ है, बिना रिजर्व बैंक के
टॉप लेबल के अधिकारियों की मिलीभगत के मुमकिन नहीं। ठीक से पता करें तो ऐसे पचासों
मामले मिलेंगे। कोई बताएगा, इस खेल में शामिल रिजर्व बैंक के अधिकारियों को कौन से
'देशभक्त' नेता बचा रहे हैं?