मुगलों के आक्रमण-अतिक्रमण, आजादी के आंदोलन से लेकर अब तक होने वाले धरना-प्रदर्शन
में एक नारा बार-बार बुलंद होता रहा है- श्दिल्ली अब दूर नहीं!श् लेकिन, गहरी-गंभीर
समस्या का पर्याय बने प्रदूषण को देखते हुए अब श्दिल्ली दूर रहेश्, यही बेहतर माना जाने लगा
है। वैसे भी यदि प्रदूषण को लेकर दिल्ली में कोहराम मचा तो मध्य प्रदेश भी चिंतामुक्त नहीं हो
सकता। क्योंकि, प्रदेश के भोपाल, इंदौर और देवास समेत छह शहर प्रदूषित शहरों की सूची
में शामिल हो गए हैं। हवा में घुला जहर दिल्ली की सीमा के नजदीक मध्य प्रदेश के शहरों को
परेशान कर रहा है। देश के 200 शहरों की निगरानी रिपोर्ट में दिल्ली-एनसीआर,
हावड़ा और पश्चिमी उप्र, लखनऊ, मेरठ, मुरादाबाद के बाद भोपाल को भी सबसे ज्यादा प्रदूषित
बताया गया है। इसके अलावा इंदौर, देवास, ग्वालियर, सागर और उज्जैन को भी ऐसे शहरों
की सूची में शामिल किया है जहां प्रदूषण का स्तर तय मानक से काफी ज्यादा है। बहरहाल,
समस्याओं पर बात करते समय समाधान का रास्ता खोजना भी आवश्यक है। सीखने, समझने और
योजना बनाने के लिए केरल के एक शहर से अब बात आगे बढ़ाते हैं। देश के 107 शहरों
में हवा की गुणवत्ता संतोषजनक स्थिति में है। इसमें केरल का एलूर भी शामिल है। पूरी
सूची में यही एकमात्र शहर है, जिसकी आबोहवा सबसे बेहतर है। एलूर केरल की महत्वपूर्ण
नदी पेरियार के पास बसा इंदौर जैसा एक औद्योगिक शहर है। जहां सरकारी-निजी
फर्टिलाइजर और केमिकल के साथ 300 से ज्यादा उद्योग हैं। चौंकाने वाली जानकारी यह है
कि 2013 में यह देश के सबसे ज्यादा विषैली हवा से भरे हुए इलाकों में शामिल था। केरल
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा एलूर में स्थापित एनवायरमेंटल सर्विलेंस सेंटर की
एनवायरमेंटल इंजीनियर श्रीलक्ष्मी पी बी बताती हैं-24 घंटे निगरानी। यदि मैं 24 घंटे
कह रही हूं, तो सही मायनों में पूरे 24 घंटे। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सर्वे
रिपोर्ट में जब यहां की हवा बेहद दूषित पाई गई तो एलूर में ऑनलाइन मॉनिटरिंग
सिस्टम तैयार किया गया। सजग और जागरूक टीम 24 घंटे तैनात रहती है। तकनीकी
निगरानी का पूरा तंत्र इस तरह विकसित किया गया है कि यदि किसी उद्योग से कोई गैस या
अपशिष्ट का रिसाव हो रहा है तो वह भी तुरंत पकड़ में आ जाता है। इस व्यवस्था से प्रदूषण से
बचाव के साथ औद्योगिक हादसों को भी रोकने में मदद मिलती है। एक हेल्पलाइन नंबर भी है।श्
स्थानीय प्रशासन का यह भी मानना है कि प्रदूषण कम करने में जनता की भागीदारी भी
उल्लेखनीय है। चूंकि, साक्षरता दर 86 प्रतिशत से ज्यादा है, इसलिए इस इलाके ने पर्यावरण
संतुलन के महत्व को ठीक से समझा है। जागरूक जनता और तत्परता से जुटा प्रशासन यदि
एलूर को बदल सकता है, तो कटनी, जबलपुर, सिंगरौली का प्रदूषण कम क्यों नहीं किया जा
सकता? पीथमपुर और मंडीदीप में हाईटेक ऑनलाइन सिस्टम के जरिए निगरानी क्यों
नहीं की जा सकती?
दुनिया का फेफड़ा कहलाने वाले अमेजन के जंगल में आग लगी तो पूरी दुनिया हिल गई। सभी
देशों के पर्यावरणविद् आगे आ गए और उन्होंने आग बुझाने की पहल शुरू कर दी
क्योंकि यहीं से पूरी दुनिया को सबसे ज्यादा ऑक्सीजन मिलती है। मध्य प्रदेश के भी अपने 18-
अमेजन (जंगल) हैं। यदि योजनाबद्ध तैयारी और क्रियान्वयन किया जाए तो यह विशाल भूभाग भी
प्रदेश के लिए ऑक्सीजन पैदा कर सकता है। वन विभाग की ताजा रिपोर्ट के अनुसार वैसे
भी नेशनल मिशन फॉर ग्रीन इंडिया प्रोजेक्ट के तहत 11915 हेक्टेयर जंगल, लैंडस्केप
और जैव विविध इलाकों को संरक्षित करना है। इसकी तुलना में अभी तक 9753 हेक्टेयर
इलाके पर ही काम हो पाया है। साफ-स्वच्छ हवा यदि हमारा अधिकार है, तो इसे साफ रखने का
कर्तव्य भी हमारा ही होगा। अब गंभीरता से योजना बनाकर बड़े पैमाने पर पौधारोपण
करना होगा। वायु प्रदूषण को कम करने के लिए गांव, कस्बों, शहरों के साथ औद्योगिक
क्षेत्रों में भी सफाई अभियान चलाना होगा। प्रदूषण नियंत्रण के लिए रियल टाइम
मॉनिटरिंग स्टेशन की संख्या भी तत्काल बढ़ानी होगी। सीएनजी-एलपीजी को प्रोत्साहित करने
के लिए सरकारी जागरूकता की भी जरूरत है। वाहनों की नियमित जांच के साथ देखरेख भी
जरूरी है। इस बात पर भी ध्यान देना ही होगा कि लोक परिवहन का उपयोग भी ज्यादा से ज्यादा
लोग करें। यदि मिलकर प्रयास किए जाएंगे तो कोई आश्चर्य नहीं कि हमारे पास भी एलूर जैसे
ढेर सारे शहर हो जाएंगे।