घातक है आरसीइपी समझौता

भारत विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का सदस्य होने के नाते दूसरे सदस्य देशों से कई
प्रकार के कृषि उत्पादों के आयात की अनुमति देता है, लेकिन अपनी कृषि के बचाव के लिए
डब्ल्यूटीओ समझौते में उपलब्ध प्रावधानों के अंतर्गत आयात शुल्क लगाकर कृषि उत्पादों के
आयात को रोकने का भी भरसक प्रयास करता है. ताकि सस्ते विदेशी कृषि उत्पाद देश में
आकर हमारे किसानों के लिए मुश्किलें न खड़ी करें. गौरतलब है कि सस्ते विदेशी कृषि
उत्पाद देश में कृषि उत्पादों की कीमत को कम कर किसानों को प्रतिस्पर्धा से बाहर कर सकते
हैं.पिछले कुछ समय में भारत द्वारा आरसीइपी (रीजनल कंप्रेहेंसिव इकोनॉमिक


पार्टनरशिप) के नाम पर 10 आसियान देशों (इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस,
सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रूनी, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कंबोडिया) तथा जापान, दक्षिण
कोरिया, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और चीन के साथ-साथ एक नये समझौते की कवायद चल रही
है. इसमें कृषि एवं डेयरी के उत्पादों में मुक्त व्यापार के नाम पर अधिकांश उत्पादों पर
आयात शुल्क शून्य पर लाने के लिए एक समझौता प्रस्तावित है. हालांकि, आरसीइपी समझौते
में विभिन्न आरसीइपी देशों से आनेवाले मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के भी 80 से 95 प्रतिशत
वस्तुओं पर आयात शुल्क शून्य करने का प्रस्ताव है, जिसका प्रतिकूल प्रभाव स्टील,
केमिकल्स, ऑटोमोबाइल्स, साइकिल, टेलीकॉम समेत कई सारे क्षेत्रों पर पडऩेवाला है.
इसीलिए ये तमाम क्षेत्र आरसीइपी समझौते का विरोध कर रहे हैं.
इस समझौते पर बातचीत की शुरुआत में भारत में आनेवाले 92 प्रतिशत कृषि उत्पादों पर
आयात शुल्क शून्य करने और सात प्रतिशत उत्पादों पर पांच प्रतिशत आयात शुल्क करने
की मांग आयी. गौरतलब है कि वर्तमान में इन मुल्कों से आनेवाले 84 प्रतिशत उत्पादों पर 15
प्रतिशत या उससे अधिक का आयात शुल्क लगाया जाता है. भारत ने विभिन्न देशों के लिए अलग-
अलग प्रस्ताव रखे, फिर भी विभिन्न देशों से आनेवाले 74 से 80 प्रतिशत कृषि उत्पादों पर
आयात शुल्क शून्य करने का प्रस्ताव दे दिया. इसका प्रभाव जानने के लिए हमें अलग-अलग सदस्य
देशों को समझना होगा और यह जानना भी जरूरी होगा कि हमारे छोटे-छोटे किसानों
का मुकाबला किन विशालकाय कृषि उत्पादकों से होनेवाला है. हमारे यहां 10 करोड़
किसान एवं गैर-किसान की जीविका डेयरी पर चलती है, जबकि न्यूजीलैंड का सारा डेयरी
उत्पाद दुनिया के कुल डेयरी निर्यातों का 30 प्रतिशत हिस्सा रखते हैं. जापान अपने देश में
चावल, गेहूं, कपास, चीनी और डेयरी के उत्पादकों के संरक्षण के लिए 33.8 अरब डॉलर
(14,136 डॉलर प्रति किसान) सहायता देता है, ताकि उसके किसानों का संरक्षण कर सके,
जबकि भारत में यह सहायता नगण्य है. इसलिए यदि हम यह सोचें कि हमारे किसानों को अन्य देशों
में व्यापार पहुंच मिल जायेगी, तो यह गलत होगा. लेकिन सस्ते कृषि उत्पादों के भारत में आयात
से भारतीय किसान प्रतिस्पर्धा से जरूर बाहर हो जायेंगे.पूर्व में 'आसियानÓ देशों के
साथ जो मुक्त व्यापार समझौता किया गया था, उसके कारण हमारे रबर, खाद्य तिलहन,
कॉफी, फल आदि पर भारी दुष्प्रभाव पड़ा. गौरतलब है कि 'आसियानÓ देशों से व्यापार
के घाटे (22 अरब डॉलर) में खाद्य तेलों के आयात का हिस्सा लगभग आधा है. मलेशिया
जैसे देशों से आनेवाले पॉम आयल जैसे घटिया तेल देश के अन्य तेलों के साथ मिलाकर
बेचा जा रहा है.नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार का लक्ष्य है कि वर्ष 2022 तक
किसानों की आमदनी को दोगुना करना है. लेकिन यदि आरसीईपी समझौता हो जायेगा, तो
इसका असर यह होगा कि देश में कृषि उत्पादों की कीमत फिलहाल कम हो जायेगी.
इसके चलते भारतीय किसानों की आमदनी तो दोगुनी नहीं होगी, लेकिन न्यूजीलैंड और
ऑस्ट्रेलिया के किसानों की आमदनी जरूर बढ़ जायेगी. ऐसे संकेत हैं कि अभी तक
वार्ताकारों ने फलों सहित कई कृषि उत्पादों को शून्य आयात शुल्क पर आयात करने हेतु
प्रस्ताव दे दिये हैं. इस कारण से भारतीय किसानों में भारी रोष उत्पन्न हो गया है.भारत
में सामान्यत: किसान दो से चार पशुओं का पालन करता है और कृषि में औसत जोत का
आकार एक हेक्टेयर से भी कम है. ऐसे में डेयरी पर यदि कोई संकट आता है, तो उसका
असर डेयरी पर निर्भर 10 करोड़ लोगों पर होगा. इतनी बड़ी मात्रा में रोजगार के
ह्रास से निपटना असंभव हो जायेगा.हमारे देश की आधी से ज्यादा आबादी कृषि पर आधारित
है. ऐसे में इतनी बड़ी जनसंख्या को जीविका देनेवाली कृषि और डेयरी को अंतरराष्ट्रीय


बाजार के उतार-चढ़ावों पर नहीं छोड़ा जा सकता और उनके लिए पर्याप्त संरक्षण की
जरूरत होगी.समय की मांग है कि भारत के अत्यंत गरीब एवं वंचित किसानों और पशुपालकों को
अंतरराष्ट्रीय बाजार के थपेड़ों से बचाया जाए. उनको बचाया जाना किसानों के लिए ही
नहीं, देश की खाद्य सुरक्षा के लिए भी नितांत आवश्यक है. हमें ध्यान रखना होगा कि कृषि और
किसान पहले से ही भारी दबाव में हैं और पिछले 10 सालों में लाखों किसान अभी तक आत्महत्या
कर चुके हैं. ऐसे में सस्ते कृषि और डेयरी उत्पादों के आयातों से कृषि संकट और भी
गहरा सकता है.