धौनी ने क्रिकेट को दी नयी पहचान

रांची में टेस्ट मैच खेला जा रहा है और धौनी के प्रशंसक, जिनमें मैं भी शामिल हूं,
उन्हें यहां खेलते देखना चाहते थे. रांची में कोई बड़ा क्रिकेट मैच खेला जाए और टीम में
धौनी नजर न आएं, तो थोड़ी मायूसी जरूर होती है. धौनी के चाहने वालों की संख्या बहुत बड़ी है,
तो दूसरी ओर एक लॉबी भी है, जो हमेशा धौनी के पीछे हाथ धो कर पड़ी रहती है. वह सोशल
मीडिया में एक सुनियोजित अभियान चलाती रही है. इसमें यह बताने की कोशिश की जाती है कि
उन्हें अब विदा करने का वक्त आ गया है, लेकिन हर बार धौनी ने बल्लेबाजी और
विकेटकीपिंग, दोनों से अपने आलोचकों को करारा जवाब दिया है. उनकी आक्रामकता में
भले ही कमी आ गयी हो, पर उनकी लय आज भी बरकरार है. हाल में ऑस्ट्रेलिया के पूर्व
क्रिकेटर शेन वॉटसन ने कहा कि यह धौनी पर निर्भर करता है कि वह संन्यास का
फैसला कब करते हैं, क्योंकि वह अब भी शानदार तरीके से खेल रहे हैं. वॉटसन ने कहा
कि धौनी के पास कौशल और फुर्ती की कोई कमी नहीं है, वह विकेटों के बीच शानदार
तरीके से दौड़ लगाते हैं और विकेटकीपिंग में भी लाजवाब हैं. वह जो भी फैसला करेंगे, वह
सही होगा, क्योंकि उन्हें पता है कि उनमें कितना क्रिकेट बचा है. दूसरी ओर, धौनी विरोधी
लॉबी यह घोषणा कर चुकी है कि क्रिकेट के मैदान पर अब धौनी शायद ही लौटेंगे.
उनका कहना है कि चयनकर्ताओं ने मन बना लिया है कि धौनी की जगह किसी अन्य खिलाड़ी को टीम
में स्थान दिया जाए. बीसीसीआइ का अध्यक्ष पद सौरभ गांगुली संभालने जा रहे हैं. वह स्पष्ट कर
चुके हैं कि वह 23 अक्तूबर को कार्यभार संभालने के बाद वह चयनकर्ताओं और व्यक्तिगत
रूप से धौनी से इस संबंध में बात करेंगे. यह सही है कि धौनी ने जुलाई में इंग्लैंड में खेले गये
वल्र्ड कप के बाद कोई मैच नहीं खेला है. वह विश्व कप के बाद वेस्टइंडीज दौरे पर भी नहीं गये थे.
दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ सीरीज से भी उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया था. ऐसा नहीं है कि
धौनी खाली बैठे हों. उन्हें भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल की मानद उपाधि मिली है और
क्रिकेट से दो महीने का अवकाश लेकर उन्होंने टेरिटोरियल आर्मी के साथ जम्मू-
कश्मीर में ड्यूटी निभायी.धौनी में गजब का कौशल है. क्रिकेट विशेषज्ञ भी मानते हैं कि
धौनी इसलिए महान हैं, क्योंकि वह दबाव में भी सटीक निर्णय ले सकते हैं. उनमें मुश्किल
परिस्थितियों में भी खुद को शांत रखने की गजब की क्षमता है. कठिन परिस्थितियों में उनके
फैसलों ने भारत को अनेक बार जीत दिलायी है. कप्तान के रूप में उनके प्रशंसकों की संख्या
व्यापक है. इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल वॉन ने धौनी को सीमित ओवर का इस दौर का
सर्वश्रेष्ठ कप्तान बताया है. उनका कहना था कि सीमित ओवरों के मैच में उन्होंने जितने कप्तान
देखें हैं, धौनी सर्वश्रेष्ठ हैं. जिस तरह वह विकेट के पीछे से सभी खिलाडिय़ों को प्रेरित करते
हैं, नये-नये विचार लाते हैं, दबाव झेलते हैं, वह देखने योग्य है. धौनी को कैप्टन कूल यूं ही
नहीं कहा जाता है. हालांकि हाल में धौनी ने कहा कि वह भी आम इंसान की तरह ही सोचते हैं,
लेकिन बस नकारात्मक विचारों पर नियंत्रण रखने के मामले में वह किसी अन्य की तुलना में
बेहतर हैं. धौनी ने कहा कि हर किसी की तरह उन्हें भी निराशा होती है. कई बार उन्हें भी
गुस्सा आता है, लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि इनमें से कोई भी भावना रचनात्मक नहीं है. इन
भावनाओं की तुलना में अभी क्या करना चाहिए, यह अधिक महत्वपूर्ण है. एक बार जब वह यह
सोचने लगते हैं, तो फिर वह अपनी भावनाओं को बेहतर तरीके से काबू कर लेते हैं. धौनी ने
कहा कि टेस्ट मैच में तो आपके पास दो पारियां होती हैं और आपको अपनी अगली रणनीति
तैयार करने के लिए थोड़ा अधिक समय मिलता है, लेकिन टी-20 में सब कुछ तुरत-फुरत होता है,
इसमें अलग तरह की सोच की जरूरत होती है.


धौनी को उनकी कप्तानी और विकेटकीपिंग, दोनों के लिए जाना जाता है. हाल ही में आइसीसी ने
जब ट्वीट कर पूछा कि दुनिया में सबसे बेहतरीन विकेटकीपर कौन है, तो अधिकांश का
जवाब था- महेंद्र सिंह धौनी. कैसी और कहां गेंद करें, गेंदबाजों को वह इसकी विकेट के पीछे
से लगातार हिदायत देते रहते हैं. स्पिनर के वक्त तो उनकी सक्रियता और बढ़ जाती है. धौनी
गेंदबाजों को खराब गेदें डालने पर झिड़कते भी हैं. हालांकि विकेट का सारा श्रेय
गेंदबाजों को मिलता है और हम अक्सर धौनी के योगदान की अनदेखी कर जाते हैं. यह अनुभव और
विशेषता किसी अन्य विकेटकीपर में कहां मिलेगी. जब भी कोई रिव्यू लेने की बात आती है,
तो धौनी का निर्णय अंतिम होता है. वनडे मैचों में 100 से अधिक स्टंपिंग करने वाले वह दुनिया के
एकमात्र विकेटकीपर हैं. उनकी तेजी और फुर्ती में कोई कमी नहीं है. पलक झपकते ही वह
बल्लेबाज की गिल्लियां उड़ा देते हैं. यह बात देश और विदेश के सभी के खिलाडिय़ों को पता है कि
अगर धौनी के हाथ में गेंद आ गयी और प्लेयर क्रीज से जरा-सा भी बाहर है, तो बल्लेबाज
किसी भी सूरत में बच नहीं सकता है. धौनी के नाम एक-से-एक रिकॉर्ड दर्ज हैं. वह दुनिया के
एकमात्र ऐसे कप्तान हैं, जिनके नेतृत्व में किसी टीम ने आइसीसी की तीनों ट्रॉफी जीती हैं. धौनी
की कप्तानी में भारत ने 2011 का वल्र्ड कप और 2007 का आइसीसी वल्र्ड ट्वेंटी-20 और
2013 में आइसीसी चौम्पियंस ट्रॉफी का खिताब जीता है.
धौनी ने क्रिकेट का चाल, चरित्र और चेहरा बदल दिया है. इसके पहले भारतीय क्रिकेट
टीम में केवल मुंबई और दिल्ली के खिलाडिय़ों का बोलबाला था. झारखंड से निकले इस
क्रिकेटर ने न केवल टीम में जगह बनायी, बल्कि उसे नयी ऊंचाइयों तक ले गया. उन्होंने
टीम का न केवल सफल नेतृत्व किया, बल्कि छोटी जगहों से आने वाले प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों
के लिए टीम में आने का रास्ता भी खोला. कपिल देव को छोड़ दें, तो इसके पहले टीम में
ज्यादातर बड़े शहरों से आये अंग्रेजीदां खिलाडिय़ों का ही बोलबाला रहा है. धौनी ने इस
परंपरा को बदला और भारतीय क्रिकेट टीम को तीनों फॉर्मेट में सफल नेतृत्व भी प्रदान
किया. इसमें तो कोई दो राय नहीं है कि उन्होंने झारखंड को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय
स्तर पर पहचान दी है. भारतीय क्रिकेट के प्रति धौनी से ज्यादा समर्पित कोई खिलाड़ी नहीं है.
उन्होंने भारतीय क्रिकेट को बहुत कुछ दिया है. भारतीय टीम के मुख्य कोच रवि शास्त्री
भी धौनी के मुरीद हैं. कुछ समय पहले उन्होंने कहा था कि धौनी जैसे खिलाड़ी 30-40 साल में एक
बार आते हैं. जब तक वह सक्रिय हैं, हर भारतीय को उनके खेल का आनंद उठाना चाहिए. जब वह
खेल के मैदान से चले जायेंगे, तब एक बड़ा खालीपन होगा, जिसे भरना मुश्किल होगा.