जिसका डर था वही हुआ। दिल्ली की आबोहवा बेहद खराब है और हवा में घुली जहरीली गैसों
के चलते सांस लेना दूभर हो गया है। लोग घर से मास्क लगाकर निकाल रहे हैं। पूरे
उत्तर भारत में धुंध की गहरी चादर है। दिन-प्रतिदिन हालत खराब हो रहे हैं और देश के
सभी शहरों में वायु प्रदूषण विकराल समस्या बनकर सामने खड़ी है। लोगों को सांस लेने में
परेशानी, आंखों में जलन सहित कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा
है। विकास के पीछे विनाश की आहट धीरे-धीरे सुनाई पडऩे लगी है। इपीसीए
(एनवायार्नमेंटल पोलल्यूशन कंट्रोल अथॉरिटी) पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम और
नियंत्रण प्राधिकरण नाम की संस्था ने 5 नवंबर तक दिल्ली में किसी भी तरह के कंस्ट्रक्शन
और पटाखाबाजी पर रोक लगा दी है। इसमें दिल्ली, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद,
गुरुग्राम शामिल हैं। इसके पीछे वजह है कि दिल्ली की हवा बेहद जहरीली हो गई है। यहां सांस
लेना मुश्किल है। एक टर्म होता है- एक्यूआई (एयर चलिटी इंडेक्स) यानी, हवा गुणवत्ता
सूचकांक। ये हवा की गुणवत्ता बताता है। इसमें एक स्केल होता है- शून्य से लेकर 500 तक
का। जितनी ज्यादा वैल्यू, उतना ज्यादा खतरनाक हवा। हर 24 घंटे में एक्यूआई मापने के
लिए हवा में मौजूद गैसों का स्तर और प्रदूषण फैलाने वाले पार्टिकल्स का स्तर मापा जाता
है। इससे पता चलता है कि हवा कितनी खतरनाक है। आम तौर पर 100 तक का एक्यूआई
सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए ठीक माना जाता है। जैसे-जैसे उसकी वैल्यू बढ़ती जाती है, वैसे-
वैसे खतरा भी बढ़ता जाता है। पिछले तीन दिन से दिल्ली और आस-पास के इलाकों का एक्यूआई
400 से 500 के बीच था। पिछले कुछ सालों से अक्टूबर-नवंबर में इस तरह की दिक्कत काफी बढ़ती
हुई देखी गई है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इसका ठीकरा पंजाब-हरियाणा
के किसानों पर फोड़ रहे हैं। हर बार किसान ही सरकार और स्वयंसेवी संस्थाओं के
हाशिये पर क्यों होते हैं, यह समझ से परे है। क्या पराली जलाने से ही दिल्ली की
आबोहवा प्रदूषित होती है? क्या दिल्ली और देश के प्रमुख शहरों की आबोहवा, प्रदूषित होने की
घटना एक या दो दिन की बात है। एक अध्ययन के मुताबिक पिछले 20 सालों से दिल्ली सहित प्रमुख
शहरों की हवा बिगड़ी हुई है। जब पानी सिर के ऊपर से बहने लगता है तब हम प्रदूषण-
प्रदूषण चिल्लाते हैं। प्यास लगने पर हम कुआं खोदते हैं। हालत इतने बदतर हो गए हैं कि वायु
प्रदूषण मापने वाला यंत्र ही नहीं काम कर रहा है। मतलब वह उच्चतम स्तर तक पहुंच गया है।
आम आदमी भारी परेशानी में है, उसे समझ में नहीं आ रहा है कि वो क्या करे, कहां
जाए? केन्द्र व राज्य सरकारें एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रही हैं। डब्ल्यूएचओ
(विश्व स्वास्थ्य संगठन) ने वायु प्रदूषण को लेकर 91 देशों के 1600 शहरों पर डाटा
आधारित रिपोर्ट जारी की थी। इसमें दिल्ली की हवा में पीएम 25 (2.5 माइक्रो पर्टिकुलेट
मैटर, अति सूक्ष्म कण) में सबसे ज्यादा पाया गया है। पीएम 25 सघनता 153 माइक्रोग्राम तथा पीएम
10 की सघनता 286 माइक्रोग्राम तक पहुंच गई है, जो कि स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। वहीं दिल्ली
की तुलना में बीजिंग में पीएम 25 की सघनता 56 तथा पीएम 10 की 121 माईक्रोग्राम है। जबकि कुछ
दिनों पहले तक बीजिंग की गिनती दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों के रूप में होती थी, लेकिन चीन
की जिनपींग सरकार ने इस समस्या को दूर करने के लिए कई प्रभावी कदम उठाए हैं, जिसके
सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। पर्यावरण विज्ञान से जुड़ी संस्था सेंटर फॉर
साइन्स एंड एनवायर्नमेंट ने पिछले दिनों राजधानी के विभिन्न स्थलों व सार्वजनिक परिवहन के
अलग-अलग साधनों में वायु प्रदूषण का स्तर मापने के लिए किए अध्ययन के आधार पर कहा कि
बस, मेट्रो, आटो व पैदल चलने वाले दिल्ली में सबसे अधिक जहरीली हवा में सांस लेने के लिए
मजबूर हैं। दिल्ली की हवा बद से बदतर होती जा रही है। एक शोध के अनुसार, वायु प्रदूषण
भारत में मौत का पांचवा सबसे बड़ा कारण है। दिल्ली में वायु प्रदूषण बढऩे का मुख्य वजह
वाहनों की बढ़ती हुई संख्या है। इधर, विश्व स्वास्थ्य संगठन का नया अध्ययन यह बताता है कि हम
वायु प्रदूषण की समस्या को दूर करने को लेकर कितने लापरवाह हैं और यह समस्या कितनी
भयावह होती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक प्रति क्यूबिक मीटर हवा में पीएम
2.5 की 25 माइक्रोग्राम तक की मात्रा को सुरक्षित समझा जाता है। हालांकि भारतीय
अधिकारी इसे 60 माइक्रोग्राम तक सुरक्षित मानते हैं। पिछले साल जब दुनिया के सबसे प्रदूषण
शहरों की सूची तैयार की जा रही थी, तब कानपुर में पीएम 2.5 की मात्रा 173 माइक्रोग्राम
थी। आईआईटी कानपुर के इनवायरमेंटल इंजीनियर प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी
कहते हैं कि इस सूची में सिर्फ कानपुर का ही नाम नहीं था। वे कहते हैं, शीर्ष 50 सबसे प्रदूषित
शहरों में वाराणसी, लखनऊ और प्रयागराग सहित गंगा के किनारे बसे हुए 20 से अधिक
शहरों के नाम थे। एक के बाद एक आंकड़े यह बता रहे हैं कि प्रदूषण एक बड़ी समस्या है और
हवा की गुणवत्ता बहुत खराब है। वायु प्रदूषण आज समूचे संसार के लिए एक बहुत ही विकट
समस्या बन गई है। देश के सभी प्रमुख शहरों की हवा प्रदूषित ही नहीं जहरीली हो गई है। शुद्ध
वायु का तो जैसे अभाव सा हो गया है। दूषित वायु में सांस लेने वाले मनुष्य स्वस्थ व निरोग किस
प्रकार रह सकेंगे। शुद्ध वायु को प्राणों का आधार माना गया है। वैज्ञानिकों का
कहना है कि पृथ्वी के वायु मण्डल में प्राणवायु कम होती जा रही है, और दूसरे तत्व बढ़ते
जा रहे हैं। यदि पेड़-पौधों को नष्ट करने की यही गति रही तो वातावरण में दूषित गैसें ही इतनी
हो जाएंगी कि पृथ्वी पर जीवन दूभर हो जाएगा। इस विकट समस्या का एक ही समाधान है अधिक से
अधिक वृक्षारोपण। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि वृक्षारोपण, बढ़ते हुए वाहनों, और
बढ़ती हुई जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं किया गया तो ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापमान) जैसी
समस्याएं विकराल रूप ले लेंगी।
बिहार की राजधानी पटना में लंबे समय से जंगलों को बचाने के लिए काम कर रही संस्था
(तरुमित्र) के प्रमुख फादर रॉबर्ट ने बताया कि एक व्यक्ति जिंदा रहने के लिए उसके आस-
पास 16 बड़े पेड़ों की जरूरत होती है, लेकिन भारत में स्थिति इसके उलट है, बढ़ती जनसंख्या के
कारण 36 लोगों को एक पेड़ पर आश्रित रहना पड़ रहा है। दुनियाभर के वैज्ञानिकों
का कहना है कि जमीन के एक तिहाई हिस्से पर वन होना चाहिए, जबकि धरती के कुल 14.4 हिस्से
पर वन हैं। भारत में सरकारी आकड़ों के अनुसार देश के करीब 23 फीसदी हिस्से पर
वन हैं, लेकिन हाल ही में आई एक गैर सरकारी संस्था की रिपोर्ट बताती है कि भारत के
केवल 11 प्रतिशत हिस्से पर वन है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की रिपोर्ट के अनुसार
प्रत्येक वर्ष लगभग 13 हजार वर्ग किलोमीटर वन धराशायी हो रहे हैं। यह स्थिति काफी
चिंताजनक है। देश में विकास के नाम पर बड़ी संख्या में पेड़ काटे जा रहे हैं, लेकिन
उन्हें लगाने की प्रक्रिया अत्यंत धीमी है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यदि विकास आगे-
आगे चल रहा है तो विनाश, परछांई बनकर उसके पीछे-पीछे चल रहा है।